क्या कम विधवा होने पर एक नारी अपने बालों का मुंडन करवा देना चाहिए ? केवल सामाजिक रीति-रिवाजों के चलते उन्हें अपने बालों का भी त्याग कर देना चाहिए । क्या सामाजिक नियम केवल स्त्रियों के लिए ही बने हैं ।
इस आधुनिक युग में भी भारत में अभी भी ऐसे कई राज्य हैं, जहां यह कुप्रथा प्रचलित है । मैं आप सबसे से पूछती हूं मित्रों कि यह प्रथा बंद होनी चाहिए कि नहीं । जो एक औरत के जीवन जीने का मौलिक अधिकार ही छीन ले ।
आज इस विषय पर मैंने एक कविता लिखी है
उम्मीद करती हूं आप सबको जरूर पसंद आएगी
मेरे लम्बे सुंदर काले काले केश सबको बहुत भाते हैं
जी मचलता है सबका इन्हें छूने को हवा में जब ये लहरातें हैं
मैं इतराती अपने सुंदर केशों पर जब ये बलखाते हैं
गर्वहोता है खुद पर जब कवि भी इन्हें बादल कहतें हैं
पर जब मैं हो जाती हूं खाली हाथ, बिना चूड़ी बिना सुहाग
क्यूं मेरे केश कटवाने मुझ पर सब जोर लगातें हैं
अब क्या मेरे केश बादल से नहीं रहे अब क्यूं नहीं किसी को भाते हैं
क्या यह मेरा अपराध है कि मैं सुहागन नहीं रही
क्या मुझे अब स्वच्छंद जीवन जीने का अधिकार नहीं रहा
क्या अब मैं अपने केशों पर इतरा नहीं सकती
लहरा नहीं सकती अपने केशों को खुली हवा में
मेरे लम्बे सुंदर काले काले केश अब सबको बहुत चुभते
हैं
कैसी औरत है दिन रात ये उलाहने अब सब मुझको देतें हैं
मेरे लम्बे सुंदर काले काले केश सबको बहुत भाते थे