शनिवार, 17 अप्रैल 2021

नवरात्रि में कन्या पूजन नहीं, कन्या को सुरक्षित रखिए

 
  

     नवरात्रि में कन्या पूजन का नियम है पर क्या वाकई में हमारा समाज नारी की पूजा करता है ? बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है एक नारी के अस्तित्व के बारे में विस्तार देना । क्या नारी केवल एक मां, पत्नी, बहन और बेटी ही होती है  । नारी केवल नारी नहीं हो सकती क्या ?

      एक नारी में भी पीड़ा है, संवेदना है, ममता है, आक्रोश है । केवल त्याग की मूर्ति नहीं है नारी,  और मेरे विचार से केवल नारी से त्याग की अपेक्षा करना न्यायसंगत नहीं है । नारी भी एक जीवित इंसान है ।

      नारी के अस्तित्व को इस दुनिया में लाने से पहले यह विचार कर लेना चाहिए कि वह इस दुनिया में सुरक्षित रह भी पायेगी या फिर आने से पहले ही गर्भ में मार दी जायेगी ।

      अगर वहां से बच गई तो फिर बड़े होने पर हर ख्वाहिश को अपने सीने में दफन कर लेगी एक लड़की या फिर समाज में घूम रहे दरिंदे नारी के अस्तित्व को मिटाने के लिए पर्याप्त है । अगर वहां से भी बच गई तो विवाह के बाद कहीं ना कहीं उसे त्याग और बलिदान करना पड़ेगा । नहीं चाहिए ऐसा जीवन जिसमें एक नारी ही हर रूप में और हर परिस्थिति में त्याग करे 

            बलात्कार एक घिनौना जुर्म बन चुका है । सामाजिक परिवेश में  घुलती अनैतिकता और बेशर्म आचरण ने पुरुषों के मानस में स्त्री को मात्र भोग्या ही निरूपित किया है। यह आज की बात नहीं है अपितु बरसों-बरस से चली आ रही एक लिजलिजी मानसिकता है जो दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है

        नारी के शरीर को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है।

       वह भी एक इंसान ही उसे भी स्वतंत्र जीवन जीने का मौलिक अधिकार है ।  जहां नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाता है । चाहे वो किसी भी आयु की क्यों न हो । वहां नवरात्रि कैसे मनाया जा सकता है ।

      अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता। पहली बार दामिनी/निर्भया के मामले में सामाजिक रोष प्रकट हुआ। वरना तो ना सोच बदली है ना समाज। अभी भी हालात 70 प्रतिशत तक शर्मनाक हैं।

      अगर कोई नारी या लड़की किसी मनचले युवक को मना कर दे तो भी उसे #एसिड_अटैक या फिर सीधे जिन्दा जला दिया जाता है । क्या यही विकृत मानसिकता लेकर हम इस पुरूष प्रधान समाज में एक नारी के अस्तित्व के लिए न्याय की गुहार करेंगे । नहीं जी ?

      केवल मां की मूर्ति को पूजा जाता है । जीवित नारी का मानसिक और शारीरिक दोहन किया जाता है । इस बार जब नवरात्रि आए तो नारी के अस्तित्व को बनाए रखिए । वरना कहीं ऐसा ना हो कि कन्या भोजन के लिए कन्या ही ना मिले  🙏

आज की कविता

                     वो सुबह कब आएगी

जब नारी पर ना हो कोई अत्याचार
वो सुबह कब आएगी
कहीं ना हो कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप
कभी तो ये प्रथा समाप्त हो जाएगी
कब एक बेटी के जन्म पर मां-बाप आंसू नहीं बहायेंगे
कभी तो बिना दहेज के बेटी ससुराल जाएगी
कब एक लड़की आधी रात को भी सुरक्षित घर लौट आएगी
कभी तो रात में भारत की एक बेटी बेझिझक अकेले बाहर जाएगी
कब एक नारी को हर जगह समान दर्जा मिलेगा
कभी तो नारी भी अपने आत्मसम्मान के साथ समाज में अपनी वजूद बना पाएगी
कब एक नारी को उसका अस्तित्व समाज में मिलेगा
कभी तो नारी भी इस पूरे विश्व में राज कर पाएगी
वो सुबह कब आएगी
वो सुबह कब आएगी

मौलिक एवम् स्वरचित

मोना चन्द्राकर मोनालिसा✍🏻
रायपुर छत्तीसगढ़



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सोमवार, 12 अप्रैल 2021

🙏हिन्दू नववर्ष और चैत्र नवरात्रि 🙏

             

       ब्रह्म पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की रचना चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन की थी। इसी के चलते पंचांग के अनुसार, हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नववर्ष शुरू हो जाता है। इस बार हिंदू नववर्ष, 13 अप्रैल 2021 से शुरू होगा। विक्रम संवत्सर 2078 हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होगा । यह आनंद नामक संवत् होगा । 

       इसी दिन चैत्र मास की नवरात्रि शुरू होती है और भारत में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है । इसे गुड़ी पड़वा भी कहते हैं । हिन्दू नववर्ष के बाद से ही सब शुभ कार्य फिर से शुरू हो जातें हैं । 

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :-

1) इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।

2) सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।

3) प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।

4) शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।

5) सिखों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।

    


आज की कविता


स्नेह की बाती जलायी है

प्रेम भाव से रंगोली बनाई

भक्ति का भोग लगाया है माँ

मन का फूल सजाया है माँ


स्वागत है आओ आओ माँ

हम सब का कल्याण करो माँ


परिस्थितियां हैं कठिन बहुत

इस संकट से जूझ रहे हैं

जीवन है मृत्यु को ग्रसित

हम सबको उबारो माँ


स्वागत है आओ आओ माँ

हम सब का कल्याण करो माँ


समय ये कैसा आया जीवन में

मानव डर रहा मानव से 

सब लोग हैं घरों में कैद

इस विपदा को दूर भगाओ माँ


स्वागत है आओ आओ माँ

हम सब का कल्याण करो माँ


मोना चन्द्राकर #monalisa✍🏻


गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

फौजी :- एक शहादत

 



      एक फौजी अपने आपको पूर्ण रूप से देश को समर्पित कर देता है । अपना घर परिवार सब को छोड़कर वो सीमा पर तैनात होकर अपने देश की रक्षा करता है । अपने प्राणों की आहुति भी दे देता है एक फौजी । धूप, जाड़ा और गर्मी सब सहकर हम सब के लिए पहरा देता है और दुश्मन को मार गिराता है ।

     अपनी  होली, दीवाली और रक्षा बंधन सब भारत मां के लिए न्यौछावर कर देता है । त्यौहार में घर वापस भी नहीं आ सकता क्योंकि हम सुरक्षित रहकर अपने घरों में त्यौहार मना सके । फौजी अपने परिवार से मिलने के तड़पता है फिर होंठों पर मुस्कान रखकर अपना फ़र्ज़ निभाता है । 

        शहीद होने पर भी उसके परिवार वाले उस पर गर्व करते हैं । परिवार के पास उसकी वीरता, शौर्य की कहानी व यादों के सिवा कुछ भी नहीं रहता । हम चाहकर भी एक फौजी का कर्ज नहीं चुका सकते । केवल सच्चे दिल से उन सबको नमन कर सकते हैं । 




आज की मेरी कविता

      मोहब्बत और शहादत 


मेरी पहली मोहब्बत तो मेरी भारत मां है

जिसके लिए मेरी जान भी कुर्बान है

उसकी ही रक्षा करूं मैं दुश्मनों से

नहीं कुछ मांगू अपने लिए कसम से

सीमा पर जब मैं डट जाऊं एक बार

दुश्मन को मार गिराऊं सौ बार

मेरा भी परिवार है मां-बाप है घर में

मेरी जीवनसंगिनी है तन्हा सफर में

उन सबको सदा मेरी चिंता लगी रहती है

मुझे उन सबका प्यार और भी ताकत देती है

जाऊं जब कभी मैं छुट्टियों में घर अपने

एक दिन में सब सच कर लेते हैं सब सपने

यही मेरी जिन्दगी की सच्चाई है

भारत मां की रक्षा के लिए ये लड़ाई है

मेरी शहादत याद करेगा पूरा हिंदुस्तान

मेरे लिए मोहब्बत जिन्दा रहेगी यही है मेरी शान


मोना चन्द्राकर मोनालिसा ✍🏻


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English translation :- 

         A soldier surrenders himself completely to the country. Except his home family, he deploys on the border and protects his country. A soldier also sacrificed his life. With the help of sun, winter and heat, it guards us and kills the enemy.

      India celebrates its Holi, Diwali and Raksha Bandhan for all its mothers. We cannot even come back to the festival because we can stay safe and celebrate the festival in our homes. Fauji yearns to meet his family, then plays his duty with a smile on his lips.

         Even after being martyred, his family is proud of him. The family has nothing but his valor, the story of valor and memories. We cannot repay a military loan even if we want to. Only with true heart can bow to them all.

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

प्रेम ❤️




प्रेम शाश्वत सत्य है
प्रेम अस्पृश्य भाव है
प्रेम मंद समीर है
प्रेम शीतल जल है
प्रेम तरु है
प्रेम पावक है
प्रेम राधा है
प्रेम कान्हा है

     प्रेम शाश्वत सत्य है । प्रेम संसार की सबसे पीड़ा भरी अनुभूति है । प्रेम आकर्षण है , प्रेम मोह हैं, प्रेम बंधन हैं, प्रेम सीमा है प्रेम नशा है, प्रेम उम्मीद है, प्रेम जादू है, प्रेम जीवन है, प्रेम एक माँग है, प्रेम एक सिद्धांत है, प्रेम नजदीकी है, प्रेम रिश्ता है, प्रेम सम्मान है, प्रेम दिल हैं, प्रेम भरोसा है, प्रेम समर्पण है ।

      प्रेम के बिना जीवन की कल्पना करना भी असंभव है । बिना प्रेम के प्रकृति भी हमें कुछ नहीं देती ।  मां का प्यार ही सच्चा लगता है । प्रेम के अनेक स्वरूप है । प्रेम समर्पण का भाव है । प्रेम वो भावना है जो आपसे कुछ भी करवा सकती है । प्रेम के बिना आप विश्वास नहीं कर सकते और जहां प्रेम नहीं वहां विश्वास भी नहीं । वहां केवल बैर और वैमनस्य पैदा हो सकता है और कुछ भी नहीं । 



     प्रेम के  बिना आप किसी पशु पक्षी और पेड़ पौधे की सुरक्षा और देखभाल नहीं कर सकते । आपको उनसे प्रेम है इसीलिए परवाह करते हैं । ईश्वर से अलौकिक रहता है जिसमें हमारी आत्मा परमात्मा से मिलती है । 

     प्रेम के कई स्वरूप होते हैं । माँ का प्रेम अनमोल और निस्वार्थ होता है । वो बिना किसी के स्वार्थ के अपने बच्चों का ख्याल रखती है , उसी के लिए जीती और मरती है । पिता का प्रेम हमें कभी दिखाई नहीं देता पर वो सदैव मौजूद रहता है एक साये की तरह हमारे साथ चलता रहता है जीवन भर । पिता अपने बच्चों की हर जरूरत पूरी करता है । 


       

💕 आज की मेरी कविता : निस्वार्थ प्रेम  💕


दुनिया में माँ का प्रेम ही निस्वार्थ होता है
केवल यही प्रेम सच्चा सुंदर कहलाता है
यही सच्चा प्रेम होता है

पिता का प्रेम हमें कभी दिखाई नहीं देता
सदैव मौजूद रहता है एक साये की तरह
यही सच्चा प्रेम होता है

बेटी का प्रेम भी बहुत निश्छल होता है
उसका प्रेम माँ के बाद सबसे अनमोल होता है
यही सच्चा प्रेम होता है

गुरु का प्रेम हमारी भलाई के लिए होता है
उसकी डांट में भी प्रेम छिपा होता है
यही सच्चा प्रेम होता है

मित्र का प्रेम सबसे अनमोल होता है
बिना मित्र के जीवन अधूरा होता है
यही सच्चा प्रेम होता है

ईश्वर का प्रेम पवित्र और अक्षय होता है
उनका आशीर्वाद हमारे लिए छत्र की तरह होता है
यही सच्चा प्रेम होता है


लेखिका :- मोना चन्द्राकर मोनालिसा ✍🏻



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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

❤️ माँ ❤️

       



      माँ क्या है ? माँ एक शीतल छांव है । माँ नहीं होती तो हमें जन्म कौन देता । माँ ईश्वर का सबसे अद्भुत अप्रतिम सृजन है । माँ पहली गुरु होती है बच्चों की । माँ का स्थान तो ईश्वर से भी ऊपर होता है । माँ हम बच्चों के लिए सब कुछ करती है । चाहे कितनी भी तकलीफ में क्यूं ना हो, हम बच्चों के लिए हर काम करने को हमेशा तैयार रहती है । 

       माँ भले ही कितनी भी डांटे लेकिन वो अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है । माँ हर किसी की जगह ले सकती है लेकिन माँ की जगह कोई भी नहीं ले सकता । चाहे वो ईश्वर ही क्यूं ना हो । धरती पर जन्म लेने के लिए ईश्वर को भी माँ की जरूरत पड़ती है । माँ का प्रेम निस्वार्थ व निश्छल होता है ।

          सबको लगता है कि ईश्वर आसमान में होतें हैं जबकि ईश्वर तो नीचे हमारे साथ होते हैं माँ के रूप में । माँ हमारे सुख दुःख की साथी होती है । माँ हमारी हर जरूरत को पहचान कर पूरी करती है । माँ ममता की खान होती है । माँ केवल हम बच्चों के लिए ही जीती है । कितनी ही रातें आंखों में गुजार देती है माँ । माँ का आदर सम्मान करो नहीं उनका अपमान करो । 



                 माँ 


मां के लिए मैं क्या लिख सकती हूं

मां के लिए सब शब्द भी कम पड़ जाएं


एक बेटी के लिए मां सब कुछ होतीं हैं

मां के बिना बेटियां बहुत रोतीं हैं


मां है तो हर दिन अच्छा है

मां नहीं है तो नहीं कुछ भी सच्चा है


बेटियां मां की परछाई होती हैं 

मां अपना वजूद बेटी में देखतीं हैं


मां ही रब है

मां ही सब है


ये दुनिया मां के बिना अधूरी है

मां ही इस पूरे जगत की धूरी है


मेरी मां प्यारी मां

हरदम याद आती मेरी मां


लेखिका :- मोना चन्द्राकर 'मोनालिसा'


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संस्कार

      

         


       आज कल के बच्चे एकल परिवार में रहते हैं इसलिए दादा दादी और नाना नानी का साथ और संस्कार नहीं जानते है । युग बदल रहा है और सबकी जीवन शैली भी बहुत कुछ बदल गई है । आजकल के युवा सिंगल फैमिली में रहना पसंद करते हैं तो उनके बच्चे भी उन्हीं का अनुसरण करते हैं । इस वजह से बच्चों को स्नेह और संस्कार अच्छे से नहीं मिल पाते क्योंकि माता पिता दोनों ही काम करने बाहर जाते हैं । समय नहीं मिलने के कारण बच्चों को घर में अकेला ही छोड़ देते हैं इसीलिए बच्चे अच्छे काम और संस्कार नहीं सीख पाते हैं  और धीरे धीरे गलत आदत और संगत में पड़ जाते हैं ना ही वो बच्चे बड़ों का सम्मान करना जानते हैं और ना ही उनके साथ रहना पसंद करते हैं ।




            दादा-दादी और नाना-नानी ही हमें संस्कार देते हैं अपने किस्सों और कहानियों के माध्यम से और जब वो साथ में नहीं रहेंगे तो बच्चों को संस्कार कहां से मिल पायेंगे ।  सभ्यता और संस्कृति को नहीं जानते और ना उसे मानते हैं । वजह है आजादी और पश्चिमी देशों के खुलापन को हूं भारतीय तेजी से अपनाते का रहे हैं । भारतीय संस्कृति विश्व में बहुत उच्च स्थान पर है जिसे विदेशी लोग भी मान रहे हैं ।

         आज देश में हमारी शिक्षा प्रणाली भी कुछ हद तक जिम्मेदार है । नैतिक मूल्यों की जानकारी एक  शिक्षक से बेहतर और कौन सीखा सकते हैं । पर आज तो शिक्षा भी अब एक व्यवसाय बन गई है ।



                 कविता :- ये वो दौर है

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

घूंघट

          



          प्राचीन मतानुसार 'रामायण' और 'महाभारत' कालीन स्त्रियां किसी भी स्थान पर पर्दा अथवा घूंघट का प्रयोग नहीं करती थीं। अजन्ता और सांची की कलाकृतियों में भी स्त्रियों को बिना घूंघट दिखाया गया है।

          मुगल जब भारत आए तब यह प्रथा उन्हीं के द्वारा प्रचलित हुआ है । हमारे सनातन संस्कृति और हिन्दू धर्म में ‌कहीं पर भी घूंघट का रिवाज था ही‌ नहीं कभी ।

           फिर भी यह रिवाज हमारे भारत देश के कई हिस्सों में अभी भी कायम है । यह प्रथा एक स्त्री की स्वतंत्रता का हनन है और उसके स्वाभिमान का भी । 

             इस प्रथा के ऊपर मेरी आज की यह कविता आप सभी को पेश करती हूं 🙏


                             🎆 घूंघट 🎆

घूंघट के पट खोल ओ गोरी
घूंघट नहीं रही अब अनमोल ओ गोरी

देश दुनिया बदल गई है
अभी भी हो तुम चंदा चकोरी
नया युग है आदर सम्मान करो
अब मीठे बोल री ओ छोरी

घूंघट के पट खोल ओ गोरी

छोड़ रिवाज घूंघट का
घर से बाहर निकल ओ गोरी
अपने पैरों पर खड़े हो कर
स्वाभिमानी बन जा ओ गोरी

घूंघट के पट खोल ओ गोरी

लज्जा नारी का धर्म कहलाये
घूंघट से लज्जा हो नहीं जरूरी
अपनेपन के व्यवहार से जीत ले
सारे समाज का सम्मान ओ गोरी

घूंघट के पट खोल ओ गोरी

बड़ों का आदर कर ले ओ गोरी
लाज शरम आंखों में रख ले
चली आई ये पुरानी रीत सदा की
सब बेड़ियां तोड़ अब ओ गोरी

घूंघट के पट खोल ओ गोरी

घूंघट रखने से अत्याचार नहीं होता
क्या साड़ी में बलात्कार नहीं होता
अपनी सुरक्षा आप कर बन सबला
दुष्टों का सामना अब तुम करो ओ गोरी

घूंघट के पट खोल ओ गोरी
घूंघट नहीं रही अब अनमोल ओ गोरी


लेखिका :- मोना चन्द्राकर मोनालिसा✍🏻


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स्वतंत्रता के बाद नारीवाद केवल नारा मात्र

  क्या स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी नारी सही मायनों में स्वतंत्र हुई है । क्या अभी भी कई क्षेत्रों में, कार्यालयों में और घरों में नारी स्वत...