आज कल के बच्चे एकल परिवार में रहते हैं इसलिए दादा दादी और नाना नानी का साथ और संस्कार नहीं जानते है । युग बदल रहा है और सबकी जीवन शैली भी बहुत कुछ बदल गई है । आजकल के युवा सिंगल फैमिली में रहना पसंद करते हैं तो उनके बच्चे भी उन्हीं का अनुसरण करते हैं । इस वजह से बच्चों को स्नेह और संस्कार अच्छे से नहीं मिल पाते क्योंकि माता पिता दोनों ही काम करने बाहर जाते हैं । समय नहीं मिलने के कारण बच्चों को घर में अकेला ही छोड़ देते हैं इसीलिए बच्चे अच्छे काम और संस्कार नहीं सीख पाते हैं और धीरे धीरे गलत आदत और संगत में पड़ जाते हैं ना ही वो बच्चे बड़ों का सम्मान करना जानते हैं और ना ही उनके साथ रहना पसंद करते हैं ।
दादा-दादी और नाना-नानी ही हमें संस्कार देते हैं अपने किस्सों और कहानियों के माध्यम से और जब वो साथ में नहीं रहेंगे तो बच्चों को संस्कार कहां से मिल पायेंगे । सभ्यता और संस्कृति को नहीं जानते और ना उसे मानते हैं । वजह है आजादी और पश्चिमी देशों के खुलापन को हूं भारतीय तेजी से अपनाते का रहे हैं । भारतीय संस्कृति विश्व में बहुत उच्च स्थान पर है जिसे विदेशी लोग भी मान रहे हैं ।
आज देश में हमारी शिक्षा प्रणाली भी कुछ हद तक जिम्मेदार है । नैतिक मूल्यों की जानकारी एक शिक्षक से बेहतर और कौन सीखा सकते हैं । पर आज तो शिक्षा भी अब एक व्यवसाय बन गई है ।
कविता :- ये वो दौर है
ये वो दौर है...
जिसमें सिर्फ मतलब के रिश्ते होते हैं...
सच्चा प्रेम और विश्वास के अब कहां नाते होते हैं...
ये वो दौर है...
जिसमें परिवार में पैसों के लिए झगड़े होते हैं...
भाई भाई का दुश्मन है अब कहां राम लक्ष्मण होते हैं...
ये वो दौर है...
जब छोटी सी कन्या को भी...
वासना की दृष्टि से देखते हैं...
यत्र नारी पूज्यंते सिर्फ किताबों में अब छपते हैं...
ये वो दौर है...
जहां बेटे मां-बाप को वृद्धाश्रम में भेजते हैं...
मां-बाप की जो सेवा करे ऐसे श्रवण अब कहां मिलते हैं...
ये वो दौर है...
जहां छोटे एकल परिवार में ही खुशियां ढूंढते हैं...
संयुक्त परिवार के आपसी सहयोग अब कहां पाए जाते हैं...
मोना चन्द्राकर "मोनालिसा"
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